Depression and Phobias are real thing, please help them out those who need…
२ दशक हो गए, ये डर यूं पनप्ता रहा,
ना कभी सोचा और ना कभी कोई मिला,
कभी नहीं समझा किसी ने मुझे इस डर के साथ,
बस चलता रहा और मुस्कुराता रहा चाहे कोई भी मिला।
इस डर के साथ घुट-घुट के जीता रहा,
डर अंदर ही अंदर मुझे मारता रहा,
पर शायद वो ताकत और विश्वास था,
जिसके साथ आगे बढ़ता रहा।
हां शायद जिंदगी से हार जाता या जीत जाता,
अंदर के डर को महसूस भी नहीं कर पाता,
जी लेता अपनी जिंदगी अपनी ही शर्तों पे,
अगर वक्त का वो मोड़ नहीं आता।
वक्त बदला सब के लिए,
मेरे, मेरे परिवार के लिए,
टूट गए हज़ारों सपने हमारे,
पर टूटा नहीं विश्वास भविष्य के लिए।
वो बैठे उस चारपाई पे,
जब हम सबने जिंदगी खत्म करने का इरादा किया,
तब खयाल आया की क्या ये ही सही है,
और फिर एक बार डर से थोड़ा मर आगे बड़ गया।
हमने घर बदले और जीने के तरीके तक बदले,
मैंने तो इसके साथ अपने शेहर भी बदले,
बोहोतो से मिला और जीने का नया तरीका सीखा,
पर वक्त के साथ जो करीब आए थे वो ही बदले।
कोई मजबूरी से बदले,
कोई मेरे बदलने से बदले,
पर में तो बदल रहा था उनकी खुशी के लिए,
जो मुझे बीन बताए ही बदले।
लोग आते रहे लोग जाते रहे,
जिंदगी का १ दशक निकाल दिया,
किसी ने खूब हसाया तो किसी ने खूब रुलाया,
पर वक्त के साथ मुझे बदल दिया।
मरता रहा हर बदलावों से,
लड़ता रहा अपने अंदर के डरों से,
पर कभी एहसास ना होने दिया,
क्युकी रोका नहीं उन्हें उनके बदलाव से।
खुदको हर ताकत से वाकिफ कराया,
हर उस आने वाले पलों के लिया तयार कराया,
लगा था जब गिरूंगा तब सम्हल जाऊंगा,
पर जब वक्त आया तो बिखर सा गया।
डर ना जाने कहां से बाहर आ गया,
दिल दिमाक मुझपे हर तरीके से हावी हो गया,
खुदको संभाला और खूब समझाया,
फिर उस आखरी उम्मीद के पास जाने का खयाल आया।
डर भरे दिल से उसे पुकारा,
सब छोड़ सिर्फ उसका साथ चाहा,
सांसों में ताकत नहीं,
फिर भी उसे दिल से पुकारा,
वो नहीं आई और दूर चली गई,
इस दिल दिमाक पे डर की जीत हो गई,
वक्त और ताकत खतम यूं हो गई,
पर मरा नहीं था की जिंदगी खत्म हो गई।
भरोसा टूट गया,
डर मजबूत हो गया,
अब सेहम कर जीता हूं,
क्युकी हर कोई बदल गया।
नहीं सेहन कर पाया की में जरूरी नहीं किसी के लिए,
नहीं जी पाया ये सोच के की, क्या कभी में याद रहूंगा,
फिर भी जी रहा क्युकी अभी मरा नहीं हूं,
वक्त के साथ बदला हूं पर रुका नहीं हूं।