आज अंधेरा बहोत है। – A Poem by Anonymal

यहां गर्मियों के दिन शुरू हो गए है,
अभी कुछ दोपहर के २ बजे है,
पर ना जाने क्यों, यहां अंधेरा बहोत है।

कभी धूप में चलते हुए, कभी कुछ काम करते हुए,
मुस्कुरा लेता हूं में भी, लेकिन दिखता नहीं कोई,
क्युकी यहां अंधेरा बहोत है।

हां, ये डर का साया जो मुझे खुदमे खीच रहा,
उसमे ताकत बहोत है, पर उसका भी निशाना चूक रहा,
क्युकी यहां अंधेरा बहोत है।

नहीं गिरने वाला और नहीं टूटने वाला अब में,
क्युकी जिनके लिए उजाला था कभी, उन्हें दिख नहीं रहा,
क्युकी यहां अंधेरा बहोत है।

खूब बिखेर ली अपनी अच्छाई की लॉ,
आब खुदके चमकने का वक्त है,
क्युकी आज अंधेरा बहोत है।

अच्छा एक बात पूछनी थी। – A Poem by Anonymal

अच्छा एक बात पूछनी थी।

होश संभाले कई साल हो गए ना,
कई अनजानों से दोस्ती करी है ना,
उनमें से कोई साथ रहा कोई मुंह मोड़ के चला गया,
पर तुमने जीना नहीं छोड़ा ना।

वो तुम्हारा मुस्कुराने की वजह ढूंढना,
वो तुम्हारा दूसरो के दुख को अपना समझना,
वो सब कुछ करना जो तुम सपने में भी नहीं सोचे,
फिर जब दिल टूटा तो अकेले में रोए ना।

खुद कितने गलत हो ये बार बार सोचा ना,
तुम्हारे ही साथ ये क्यों हुआ इस्सपे भी सोचा ना,
कहां कमी रह गई, क्या बिगाड़ दिया तुमने किसिका,
इन सवालों से खुदका जीना दुश्वार किया ना।

जब इतना सोच ही रहे हो,
इतना तसव्वुर कर ही रहे हो,
तो एक बात पूछनी थी,
क्या वो खुश नहीं तुम्हारे बिना।

वक्त के साथ बदला हूं पर रुका नहीं हूं। – A Poem by Anonymal

Depression and Phobias are real thing, please help them out those who need…

२ दशक हो गए, ये डर यूं पनप्ता रहा,
ना कभी सोचा और ना कभी कोई मिला,
कभी नहीं समझा किसी ने मुझे इस डर के साथ,
बस चलता रहा और मुस्कुराता रहा चाहे कोई भी मिला।

इस डर के साथ घुट-घुट के जीता रहा,
डर अंदर ही अंदर मुझे मारता रहा,
पर शायद वो ताकत और विश्वास था,
जिसके साथ आगे बढ़ता रहा।

हां शायद जिंदगी से हार जाता या जीत जाता,
अंदर के डर को महसूस भी नहीं कर पाता,
जी लेता अपनी जिंदगी अपनी ही शर्तों पे,
अगर वक्त का वो मोड़ नहीं आता।

वक्त बदला सब के लिए,
मेरे, मेरे परिवार के लिए,
टूट गए हज़ारों सपने हमारे,
पर टूटा नहीं विश्वास भविष्य के लिए।

वो बैठे उस चारपाई पे,
जब हम सबने जिंदगी खत्म करने का इरादा किया,
तब खयाल आया की क्या ये ही सही है,
और फिर एक बार डर से थोड़ा मर आगे बड़ गया।

हमने घर बदले और जीने के तरीके तक बदले,
मैंने तो इसके साथ अपने शेहर भी बदले,
बोहोतो से मिला और जीने का नया तरीका सीखा,
पर वक्त के साथ जो करीब आए थे वो ही बदले।

कोई मजबूरी से बदले,
कोई मेरे बदलने से बदले,
पर में तो बदल रहा था उनकी खुशी के लिए,
जो मुझे बीन बताए ही बदले।

लोग आते रहे लोग जाते रहे,
जिंदगी का १ दशक निकाल दिया,
किसी ने खूब हसाया तो किसी ने खूब रुलाया,
पर वक्त के साथ मुझे बदल दिया।

मरता रहा हर बदलावों से,
लड़ता रहा अपने अंदर के डरों से,
पर कभी एहसास ना होने दिया,
क्युकी रोका नहीं उन्हें उनके बदलाव से।

खुदको हर ताकत से वाकिफ कराया,
हर उस आने वाले पलों के लिया तयार कराया,
लगा था जब गिरूंगा तब सम्हल जाऊंगा,
पर जब वक्त आया तो बिखर सा गया।

डर ना जाने कहां से बाहर आ गया,
दिल दिमाक मुझपे हर तरीके से हावी हो गया,
खुदको संभाला और खूब समझाया,
फिर उस आखरी उम्मीद के पास जाने का खयाल आया।

डर भरे दिल से उसे पुकारा,
सब छोड़ सिर्फ उसका साथ चाहा,
सांसों में ताकत नहीं,
फिर भी उसे दिल से पुकारा,

वो नहीं आई और दूर चली गई,
इस दिल दिमाक पे डर की जीत हो गई,
वक्त और ताकत खतम यूं हो गई,
पर मरा नहीं था की जिंदगी खत्म हो गई।

भरोसा टूट गया,
डर मजबूत हो गया,
अब सेहम कर जीता हूं,
क्युकी हर कोई बदल गया।

नहीं सेहन कर पाया की में जरूरी नहीं किसी के लिए,
नहीं जी पाया ये सोच के की, क्या कभी में याद रहूंगा,
फिर भी जी रहा क्युकी अभी मरा नहीं हूं,
वक्त के साथ बदला हूं पर रुका नहीं हूं।

Late but True Realisation!!! – A Poem by Anonymal

उसे यकीन है की वो मुझसे बेइंतहां प्यार करती है,
हां उसे यकीन है की वो आज भी मुझे उतना ही चाहती है,
हां उसे यकीन है की आज भी में उसकी जान हूं,
पर उसे आज भी में सिर्फ जरूरत में याद आता हूं।

जब घर पे मां से बेहस हुई तब में याद आया,
जब किसी दोस्त की कोई बात बुरी लगी तब में याद आया,
जब मन से मांगा कुछ ना हुआ तब में याद आया,
क्युकी में वो साया था जो बिना रोशनी के उसके साथ आया।

में बना उसका साया हर एक जरूरत में उसकी,
में बना उसका साया हर एक नादानी में उसकी,
में बना उसका साया हर एक ज़िद्द में उसकी,
पर ये साया तो पीछे था, वो साथ कैसे चलाती।

ना चल सका साथ क्युकी उसने कभी चाहा नहीं,
कदम से कदम मिलाऊ शायद उस लायक था नहीं,
उसके ख्वाबों की तेज़ी से जीत न सका,
क्युकी में प्यार पाऊं वो किस्मत ही नहीं।

किस्मत पे रॉ कर अब करना क्या है,
उसको जो करना था उसके आगे अब मेरा मरना क्या है,
वक्त के ढलते में भी भुला जाऊंगा,
किस्मत से ज्यादा मेरी उम्मीद क्या है।

भूलूं तो क्या भूलूं! – A Poem by Anonymal

मेरी रूह के ज़र्रे तक में तुम समाई हो,
तुम्हे भूलूं तो क्या भूलूं,

वो शाम,
जब समंदर की लेहरे हमारे नंगे पैरों को छू रही थी,
जब डूबते सूरज की रोशनी यूं मचल उठी थी,
जब में तुममे और तुम मेरी बाहों में थी,
क्या ये भूल जाऊ।

या वो दिन,
जब बंद कमरे की चार दीवारों के बीच तुमने अपने डर बताए,
जब मैंने बेखौफ होके तुम्हे अपनी कमजोरियां बताई,
जब तुम और में से हम हम में बदल गए,
क्या ये भूल जाऊ।

या वो रात,
जब तुम सारी परवाह छोड़ नशे में नाच रही थी,
जब में तुम्हे हस्ते देख मुस्कुरा रहा था,
जब मैंने तुम्हे नशे की हालत में अपने सीने से लगा कर सुलाया था,
क्या ये भूल जाऊ।

भूलना तो वो दुख है, जो ना जाने अंजाने में तुमने मुझे दिया,
उस लम्हे को भूलना है जब मैंने तुम्हे प्यार की नज़र से ना देखा,
भूलना तो वो पल है जिसके कारण हम आज यहां है।
पर भूलूं तो क्या भूलूं, जब जीना ही भूल गया हूं।

Yes! I had many dreams – A Poem by Anonymal

The sky was beautiful when we met,
Though our love was undisclosed as yet,
I started feeling for you,
As the birds sang when we reset.

The journey started with an amaze,
Our love came out like a blaze,
I let myself die for you,
But still there was an empty place.

The days went by like paper in the wind,
Our love grew like it was winged,
I was shocked to be loved,
But soon it all got dimmed.

We felt the connection was concrete,
Building to fight our own fleet,
It turned out to be a dream,
When you started to retreat.

Falling for each other was a great dive,
Our love was a crazy drive,
I waited for that one loving yes,
But you proved this was never enough for me to survive.

You always had number of teams,
With many to be as supporting beams,
I stood there alone till the end,
Because, yes! I had many dreams.

Heart touching Randomness!!! – A Poem by Anonymal

आज एक बहुत खूबसूरत सा वाख्या हुआ, चलो आप सब से बयां करता हो।

एक बहोत ही खूबसूरत लड़की है वो,
नादान है पर बहोत समझदार है वो,
प्यार तो इतना भरा है उसमे की क्या बताऊं,
पर ख्वाबों की दुनिया में रहती है वो।

जानती सब है समझती भी सब है,
पर ना जानके खुश रहने में विश्वास रखती है वो,

हम 2 दिन से बात कर रहे पर उसकी या मेरी नहीं,
ना तो वो मुझे जानती है ना ही में उससे,
पर फिर भी उसके कई राज़ जान चुका हु में।

उसकी हरकतों से तो बहोत मासूम है वो,
उसकी मुस्कुराहट से सबका दिल जीतती है वो,
आवाज़ इतनी प्यारी है की दिल शांत हो जाए,
पर मेरी हक़ीक़त से बहुत दूर है वो।

कहीं न कहीं अपनी सी लगी मुझे है,
पर में जानता हूं मुझसे बहुत दूर है वो,

उसको समझके दिल बड़ा बैचेन हुआ,
ना जाने क्यों उसको उन्न दुखो से दूर करने का दिल हुआ,

जो दिल में आया सब बता दिया,
हर एक डर से उससे वाकिफ करा दिया,

सोचा जिस राह से में गुज़रा हूं उसके काबिल नही वो,
अभी तो हंसना सीखा है रोने के लिए हसी नही वो,
रूह इतनी खूबसूरत है उसकी की शाम शर्मा जाए,
अभी तो जीना सीखी है वो।

मेरी आंख तब भर आई, जब उसने मुझे कोई फरिश्ता कहा,
बड़े प्यार से मुझे अपना भाई बनने के लिए कहा,

में क्या ही केहता इस दुख भरे दिल से,
नाकार दिया इस रिश्तें से, क्युकी में जानता हूं,
रिश्तेँ निभाने लायक में अभी हुआ नही हो।

बहोत ही खूबसूरत है वो,
भगवान का दिया तोफ़ा है वो,
खुदा करे उससे सारी खुशी मेले,
एक भाई की प्यारी बेहेन है वो।

The FALL of trust! – A Poem by Anonymal

हमारा रिश्ता खत्म हुआ है दोस्ती नहीं,
जब जरूरत होगी में हूं, तुमने ही कहा था ना,
कहती रही प्यार बहुत है, तेरे बिना जी नहीं सकती,
फिर आज जब जरूरत पड़ी तो मुंह मूड क्यों लिया,

कल रात में जब अपने साए से लड़ रहा था तो खयाल सिर्फ तुम्हारा था,
हिम्मत करके एक जुट होकर सोचा तुम्हारे पास आने का,
फिर खयाल आया तुम्हारी उस्स खुशी का जो तुम अभी जी रही हो,
और यही सोच कर मेरे हाथ पैर जैसे सुन से क्यों हो गए,

वो वादा याद आया जिसमे कहा था में ज़रूर मिलूंगा,
दुख के आंसुओ के साथ अपना दर्द लिखा,
वो प्यार कि चाह में अपना घुसा लिखा,
इस उमीद भरे इंतज़ार में तुम आई नहीं क्यों,

इतने वक्त में मुझे इतना ही जाना था क्या,
अपनी खुशी के लिए कभी कुछ मांगा था क्या,
फिर आज क्यों यूं धूल सा उड़ा दिया मुझे,
क्या इस लायक ही हूं में।